बुधवार, 19 अक्तूबर 2011

धरती के कण कण में कोने कोने में

धरती के कण कण में कोने कोने में

अपना ही आनंद है फसलें बोने में

(1)

जिसने जो बोया वो उसने पाया है

किस्मत से ज्यादा कब किसने पाया है

क्या रखा है लोगो आंख भिगोने में

धरती के कण कण में कोने कोने में

(2)

जो मिल जाये उसको ही स्वीकार करो

इतना देने का उसका आभार करो

कमी नहीं करता वो लेने देने में

धरती के कण कण में कोने कोने में

(3)

कभी न कोई पाप करो

जीवन भर इंसाफ करो

उम्र गुजरती है पापों को धोने में

धरती के कण कण में कोने कोने में

(4)

यह बात सभी ने सच मानी

मेहनत ही ख्वाबों की रानी

क्या रक्खा है झूठे जादू टोने में

धरती के कण कण में कोने कोने में


शनिवार, 15 अक्तूबर 2011

रंग लगे सब फीके

प्यार के रंग में ऐसी डूबी,

रंग लगे सब फीके |

प्यार में जीत के मै तो हारी,

हार के तुम हो जीते ||


मोहे पिया बिन चैन न आवे

कोई जाये उन्हें ढूंढ़ लावे

(1)

जा बैरन निदिया ना टूटी

किस्मत मेरी हमसे रूठी

चले गए परदेश सजनवा

प्रीत लगा कर झूठी

कोई उनका पता बतावे

कोई जाये उन्हें ढूंढ़ लावे

(2)

दरवाजे तुम बैरी मेरे

नहीं लगाये तुमने पहरे

जीवन भर जो दर्द करेंगे

घाव दिए है गहरे

कोई इस दिल को समझावे

कोई जाये उन्हें ढूंढ़ लावे

(3)

राहों तुमने भी ना रोका

जाते भी ना उनको देखा

किधर गये चितचोर सांवरिया

देकर हम को धोखा

मोहे रात को नीद ना आवे

कोई जाये उन्हें ढूंढ़ लावे


मंगलवार, 11 अक्तूबर 2011

सागर में पानी है जितना

प्यार करेंगे तुमको इतना

सागर में पानी है जितना

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दिल के दरवाजे पर

दोगे दस्तक कब

लोग कहें पागल

दीवाना मुझको अब

मै तो चाहूँ दिल में तेरे घर अपना

सागर में पानी है जितना

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दिन कट जाता है

मिलने की आस लिए

रात नहीं कटती

बिरहा का घूंट पिए

न जाने कब पूरा हो मेरा सपना

सागर में पानी है जितना

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साँस साँस पर नाम

तुम्हारा रटते है

तेरे नाम से सजाते

और संवरते है

दिल चाहे तेरे चरणों में मिटना

सागर में पानी है जितना

मिलेंगे तुमसे एसे

ना हों दूर कभी

सागर में मिलती है

जैसे बिछड़ी नदी

तुम ना हमसे शर्मना

सागर में पानी है जितना