मंगलवार, 15 नवंबर 2011

दर्द का अब अहसास न दे

दर्द का अब अहसास न दे

अब कोई आबाज़ न दे

जिनकी कुछ बुनियाद नहीं है

ऐसा कोई ख्वाब न दे


दर्द की आहें और निकलती

इस सूखे बंज़र मन से

दबा के पेट से भीगा कपडा

भाग्य लपेटा है तन से


तिनका तिनका ख्वाव जलाकर

राख समेटे हाथों में

अब तक कितनी कशिश है

शाकी तेरी रुखी बातों में


ना जाने किस राह का में

भूला भटका राही हूँ

किसी कवि की अधूरी कविता

या फिर टूटा आइना हूँ


रफ्ता रफ्ता उमर बढ़ी

जीवन की चौखट सुखी है

नोटों से मुह भरा है लेकिन

दुनियां प्यार की भूखी है


जिधर भी मन का झोंका जाता

एक बीरानी सी छाई है

अहसासात के सूखे कुएं है

दिलों में गहरी खाई है


2 टिप्‍पणियां:

  1. दर्द का अब अहसास न दे

    अब कोई आबाज़ न दे
    जिनकी कुछ बुनियाद नहीं है
    ऐसा कोई ख्वाब न दे

    अच्छा गीत है लय है मधुर है........... र्राग में ढल जाए तो मज़ा आ जायेगा.....!!!

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