अब कोई आबाज़ न दे
दर्द की आहें और निकलती
इस सूखे बंज़र मन से
भाग्य लपेटा है तन से
तिनका तिनका ख्वाव जलाकर
राख समेटे हाथों में
अब तक कितनी कशिश है
शाकी तेरी रुखी बातों में
भूला भटका राही हूँ
या फिर टूटा आइना हूँ
रफ्ता रफ्ता उमर बढ़ी
नोटों से मुह भरा है लेकिन
दुनियां प्यार की भूखी है
जिधर भी मन का झोंका जाता
एक बीरानी सी छाई है
अहसासात के सूखे कुएं है
दिलों में गहरी खाई है